बाली द्वारा सुग्रीव को राज्य से निकालने के बाद अचानक एक दिन सुग्रीव किष्किंधा के मुख्य द्वार पर आकर भीषण गर्जना करता हुआ बाली को ललकारने लगा ! बाली बरे ही असमंजस में सोच रहा था की सुग्रीव में इतनी हिम्मत कहा से आई की वो ये जानते हुए की बाली के सामने जाते ही उसकी आधी शक्ति बाली में समा जाएगी फिर भी उसे ललकार रहा है। और तभी बाली की पत्नी तारा ने कहा स्वामी मुझे गुप्तचर से पता चला है की अयोध्या के दो राजकुमार राम और लक्ष्मण से सुग्रीव की मित्रता हुई है और इसी कारन सुग्रीव ऐसे घोर नाद कर के आपको ललकार रहा है। इसपर बाली ने कहा तो ये बात है, पर वो सायद भूल गया की मैं अजेय हूँ। और तारा के लाख मना करने के बाद भी बाली अहंकार से गरजता हुआ सुग्रीव से युद्ध करने निकल पारा। और फिर शुरू हुआ सुग्रीव और बाली का भयानक युद्ध।
पहले तो सुग्रीव ने बाली का काफी देर तक सामना किया, कभी सुग्रीव का गदा बाली को लगता और वो गिर परता और कभी बाली का गदा सुग्रीव को लगता तो सुग्रीव कराह उठते। काफी देर युद्ध होने के बाद जब सुग्रीव को लगा की वे अब हार जायेगे और बाली उन्हें मार देगा तो सुग्रीव युद्ध छोर भाग खरे हुए। वहा जब श्रीराम लक्ष्मण आये तो सुग्रीव ने पहले तो उन्हें बहुत खरी खोटी सुनाई पर जब श्रीराम के स्पर्श मात्र से सुग्रीव स्वस्थ हो गए तो सुग्रीव ने श्रीराम की विवसता को समझा की बाली-सुग्रीव दोनों के एक जैसे होने कारन ही श्रीराम ने बाण नहीं चलाया। और फिर श्रीराम के कहने पर सुग्रीव एक दिव्य माला पहने पुनह किष्किंधा के द्वार पर आकर बाली को ललकारने लगे। और जब पुनह अपने बल के अहंकार में बाली, सुग्रीव से युद्ध करने लगा तो कुछ ही देर बाद श्रीराम ने बाली पर अपना अमोघ बाण चला दिया। और फिर दर्द से कराहता बाली वही ढेर हो गया।
फिर जब श्रीराम बाली के समक्ष आये तो बाली ने उनसे पुछा की - हे मर्यादापुरुषोत्तम कहलाने वाले राम आपने किस अपराध मझे मारा, इसपर श्रीराम बाली को स्पर्श किया और तभी बाली पिछली सारी बात याद आ गई की वो तो असल में इंद्र का अंस था और रावण से महायुद्ध में श्रीराम की सहायता के लिए ही वानर रूप में जन्म लिया था पर अहंकार में आकर उसने श्रीराम से ही द्रोह किया और रावण से ही मित्रता कर ली। और उसके इसी अपराध के लिए श्रीराम ने उसका वद्ध कर दिया।

