माता महाकाली के भयानक क्रोध को कौन नहीं जनता ! वे जब क्रोध से गर्जना करने लगती है तो स्वयं महादेव भी उनका सामना करने से कतराते है। वही शिव के ही रुद्रावतार हनुमान जी की अपार शक्तियों के बारे में क्या ही कहना। वे जब क्रोध से गर्जना करते हुए गदा चलाते है तो समस्त भूमण्डल काप उठता है। दोनों ही परम शक्तिशाली धर्म की ध्वजा है, फिर ऐसा क्या हुआ की हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप और क्रोध से गर्जना करती माता महाकाली के बीच अत्यंत ही भयानक युद्ध शुरू हो गया।
दरअसल यह महायुद्ध महाकाल की नगरी उज्जैन में घटित हुआ क्योकि अचानक एक रात उज्जैन के शिप्रा नदी के पास ही स्थित महाकाली के गढ़कालिका मंदिर के आसपास की धरती ऐसे हिलने लगी मानो प्रलय होने वाला हो। वही गढ़कालिका मंदिर में विराजमान माता महाकाली को भी इस अचानक हुए बदलाव से बरा ही आश्चर्य हुआ। माता महाकाली को अपनी शक्तिपीठ की सीमाओं के भीतर किसी प्रचंड दिव्य तथा बेहद शक्तिशाली ऊर्जा के प्रवेश का आभास हुआ। उनका क्रोध बढ़ने लगा और देखते ही देखते वे अपने विकराल रूप में आकर क्रोध से गर्जना करती हुई बोलने लगी। शिव शक्ति के इस क्षेत्र में कौन है जो बिना अनुमति के प्रवेश की गलती कर रहा है, आज मेरे हाथो उसका अंत निश्चित है।
पर असल में यह प्रचंड ऊर्जा किसी असुर या दैत्य की नहीं बल्कि पवनपुत्र हनुमान की थी। जब माता महाकाली के कई बार पुकारने पर भी कोई उनके समक्ष नहीं आया तो वे अत्यंत ही उग्र होकर स्वयं ही उस महाशक्ति को ढूंढने के लिए निकल परी।
लेकिन पवनपुत्र हनुमान को अचानक महाकाली के इस क्षेत्र में क्यों आना परा और फिर क्यों हनुमान जी और माता महाकाली के बीच एक महाप्रलयंकारी युद्ध शुरू हो गया।
असल में यहा सिर्फ हनुमान जी ही नहीं बल्कि श्रीराम लक्ष्मण माता सीता सहित और भी कई लोग थे। क्योकि लंका विजय के बाद अयोध्या जाते हुए श्रीराम उज्जैन के महाकाल शिव के दर्शन करने के लिए शिप्रा नदी के किनारे उतरे थे। पर रात होने के कारन श्रीराम सहित सभी कुटिया में विश्राम करने लगे जबकि हनुमान जी चौकन्ने होकर पहरा देने लगे।
कुछ ही समय गुजरा होगा की हनुमान जी को अपनी ओर किसी महाशक्ति के आने का आभास होने लगा। वे तुरंत उस विशालकाय महाशक्ति की ओर बढे जो असल में माता महाकाली थी। माता महाकाली को जैसे ही ये पता चला की उनके धाम में श्रीराम आये है तो उनके हर्ष का ठिकाना न रहा और वे तुरंत श्रीराम के दर्शन के लिए उनकी कुटिया की ओर बढ़ चली। पर तभी उनके रास्ते में दीवार की तरह खरे हो जाते है पवनपुत्र हनुमान। अपना मार्ग अवरुद्ध देख माता महाकाली को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा। वे तुरंत अपने विकराल रूप में आकर गर्जना करती हुई बोलने लगी। वानर हट जा मेरे मार्ग से नहीं तो परिणाम अच्छा नहीं होगा। इसपर हनुमान जी ने कहा - परिणाम की किसे चिंता है, मैं तो अपने कर्तव्य का पालन कर रहा हूँ। और पहले ये बताये की आप है कौन और बिना वजह इतना क्रोध क्यों कर रही है।
इसपर माता महाकाली ने कहा मैं यहाँ की स्वामिनी महाकाली हूँ और श्रीराम के दर्शन करना चाहती हूँ। तब हनुमान जी ये जान की वे माता महाकाली है, विनम्रता से प्रणाम करते हुए कहा, माता, प्रभु अभी विश्राम कर रहे है और मैं उनके कक्ष में नहीं जा सकता, आप प्रातह होते ही उनका दर्शन कर ले। पर अब बहुत ही देर हो चुकी थी, माता महाकाली ने जब ये सुना की एक वानर उन्हें मना कर रहा है वे क्रोध से गर्जना करती हुई बोलने लगी। मैं किसी के आज्ञा के अधीन नहीं वानर, मेरे मार्ग से हट जाओ। नहीं तो आज तुम्हारा अंत निश्चित है।
और फिर शुरू हुआ हनुमान जी और माता महाकाली के बीच ऐसा भयानक युद्ध जिसका आप सभी को इन्तजार था।
माता महाकाली के बार बार चेताने पर भी जब हनुमान जी सामने से नहीं हटे तो माता महाकाली का क्रोध नियंत्रण से बाहर हो गया। उन्होंने अपनी खड्ग हवा में ऐसे लहराई मानो तूफान आ गया हो और जोर से गर्जना करते हुए हनुमान जी पर एक प्राणघातक प्रहार कर दिया। हनुमान जी ने भी बिजली की गति से अपनी गदा से उस खड्ग की ओर प्रहार कर दिया। और जैसे ही वो खड्ग और गदा आपस में टकराए, वैसे ही ऐसा विस्फोट हुआ मानो प्रलय आ गया हो। अपने खड्ग को असफल होता देख माता महाकाली ने गर्जना करते हुए अपने हाथो में एक अत्यंत ही दिव्य धनुष प्रगट किया और एक दिव्य पन्नागास्त्र अस्त्र से प्रहार कर दिया।
हनुमान जी उस भयानक पन्नागास्त्र को अपनी ओर आता देख अपने गदे को दोनों हाथ से पकर कोई मंत्र पढ़ने लगे। उधर वो अस्त्र कुछ दुर चलकर अचानक कई भयानक सर्पो में बदल काल की भाती हनुमान जी की ओर बढ़ने लगे। और जैसे ही वो सर्प हनुमान जी के थोरा नजदीक आये हनुमान जी ने अपने गदा को छोर दिया। उनकी गदा अचानक अनेको दिव्य गरूर में बदल गया और माता महाकाली के के अस्त्र से निकले सभी सर्पो को नष्ट कर दिया। और अपने इस अस्त्र को नष्ट होता देख माता महाकाली न जाने क्यों एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ हस परी। और तभी हनुमान जी ने एक विशाल वृक्ष को उठाकर माता महाकाली की ओर तीव्र गति से फेंका और इसे देख माता महाकाली अपनी तलवार से एक ऐसा प्रहार किया की वो वृक्ष रास्ते में ही नष्ट हो गया। और इस बार माता महाकाली ठहाके मारकर हसने लगी।
हनुमान जी ये समझ नहीं पा रहे थे की माता महाकाली इसप्रकार हस क्यों रही है।
असल में ये सब माता महाकाली की सोची समझी लीला थी। क्योकि गढ़ कलिका कोई आम मंदिर नहीं बल्कि वो शक्तिपीठ था जहा माता सती के ओठ गिरे थे। और इसी कारन से यह दिव्य शक्तिपीठ माता महाकाली के अत्यंत ही निकट और ध्यान के लिए प्रमुख स्थान था।
लेकिन राक्षसों के बार-बार आक्रमण से उनका ध्यान भंग होता था। इसीलिए माता ने सोचा कि अगर हनुमान जैसा महावीर इस तीर्थ की रक्षा करे, तो उनके ध्यान में कोई बाधा नहीं आएगी। हनुमान जी के बल, बुद्धि, और निष्ठा की परीक्षा के लिए ही माता महाकाली ने यह भीषण युद्ध रचा था।
माता महाकाली को हसता हुआ देख हनुमान जी को लगा वे सायद उनका मजाक बना रही है। फिर उन्होंने अपना आकर बढ़ाना शुरू किया और एक भीषण गर्जना की। हनुमान जी को गर्जना करते देख माता महाकाली भी क्रोध से गर्जना करने लगी। दोनों की गर्जना इतनी तीव्र थी की तीनो लोक काप उठे। माता महाकाली ने अनेक अस्त्रों से हनुमान जी पर प्रहार करना शुरू कर दिया, यह देख हनुमान जी ने भी अपना पंचमुखी रूप लेकर अनेक अस्त्रों से प्रहार करना शुरू कर दिया। पर अभी तक तो माता महाकाली बस खेल ही रही थी क्योकि जैसे ही हनुमान जी ने अपना पंचमुखी रूप लेकर उनके सभी अस्त्रों को नष्ट कर दिया तो माता महाकाली क्रोध से तांडव करने लगी। और अब उन्होंने अपना अमोघ त्रिशूल लहराना शुरू कर दिया, देखते ही देखते माता महाकाली ने अपना सबसे विशालकाय विश्वरूप प्रगट कर लिया। धरती से आसमान तक चारो ओर सिर्फ माता महाकाली ही दिख रही थी।
यह देख हनुमान जी तत्काल छोटे रूप में आ गए और प्रणाम करते हुए माता महाकाली को शांत होने के लिए प्रार्थना करने लगे। क्योकि वे जानते थे की अगर माता महाकाली ने अपना त्रिशूल चला दिया तो यह पृथ्वी इसी समय नष्ट हो जाएगी।
और जब काफी देर प्रार्थना करने के बाद भी जब माता महाकाली का क्रोध शांत न हुआ तो वे तुरंत बोल उठे - हे माता, मैं तो बस अपने कर्तव्य का ही पालन कर रहा था और अगर बालक से गलती हो भी जाये तो सहज ही क्षमा करना माता का स्वाभाव ही तो है। हनुमान जी की करूण पुकार सुनते ही माता शांत हो गई और अपने सौम्य रूप में आकर हनुमान जी से बोली, हनुमान मैं तो बस तुम्हारी परीक्षा ले रही थी और तुमने अपनी बल बुद्धि और स्वामी भक्ति से यह सिद्ध कर दिया की तुम मेरे नगर के रक्षक बनने के योग्य हो।
और तब माता पुरानी सब कथा विस्तार से सुनते हुए कहा तुम अपना एक रूप यहा छोर जाओ और मेरे ध्यान में होने पर मेरे भक्तो की असुरो से रक्षा करो। और तभी से हनुमान जी का एक रूप उज्जैन में ही रह गया। सुबह होते ही श्रीराम ने सबको लेकर माता गढ़कालिका तथा महाकालेश्वर महादेव के दर्शन किये और इसके बाद अयोध्या के लिए निकल परे। तथा इस रहस्य को अंतर्यामी श्रीराम तथा माता सीता के अतरिक्त कोई जान नहीं पाया।

