रावण को अपने एक ही मुक्के से अचेत करने वाले जामवंत जी और महाभारत युद्ध के केंद्रबिंदु श्रीकृष्ण दोनों ही धर्म के मुख्य योद्धा होने के बाद भी ऐसा क्या हुआ की जामवंत जी ने श्रीकृष्ण को ही युद्ध के लिए ललकारने लगे।
दरअसल द्वापर युग के अंत में एक गुफा में बैठे जामवंत जी अपने पुत्री से बोल रहे थे, अरे जामवंती! गुफा से बहार मत जाना और तभी जामवंती डरी हुई उनके पास आई और बोली पिताश्री अपने गुफा में एक सिंह आ गया है और जब जामवंत जी ने उस सिंह से युद्ध कर उसे परास्त कर दिया तो जामवंत जी को मिला सिंह के जबरे में दबा वो स्यमंतक मणि जिसके कारन आगे उनके प्राण संकट में आ गए।
असल में जब श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि के चोरी का आरोप लगा तो उस मणि को ढूंढते ढूंढते उस गुफा में पहुंचे और जब बार बार मांगने पर भी जामवंत जी ने वो स्यमंतक मणि श्रीकृष्ण को देने से मना कर दिया तब शुरू हुआ श्रीकृष्ण और जामवंत का भयानक युद्ध।
जामवंत ने सोचा कि श्रीकृष्ण उन्हें देखकर डर जायेंगे, पर श्री कृष्ण तो मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। यह देखकर जामवंत जी का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। उन्होंने गर्जना करते हुए बोला "अरे मूर्ख बालक! तू मुझसे मणि छीनेगा? तुझे पता भी है मैं कौन हूँ? मैं वो जामवंत हूँ जिसने त्रेता युग में बरे-बरे राक्षसों को कीरे-मकौरे की तरह मसल दिया था। और जब श्रीकृष्ण ने व्यंग भरे स्वर में कहा - तुम जामवंत हो, क्या मजाक है ! यह सुनते ही जामवंत जी ने क्रोधित होकर अपनी वज्र जैसी मुट्ठियों से श्रीकृष्ण पर प्रहार कर दिया। इसपर जब श्रीकृष्ण ने भी अपनी मुठ्ठियो से जामवंत जी पर प्रहार किया तो जामवंत जी दूर जा गिरे।
और फिर ये युद्ध ऐसा शुरू हुआ की, एक दो दिन नहीं बल्कि ये युद्ध पूरे 28 दिनों तक बिना रुके चला, और जब अंत में जामवंत जी हार गए तब उन्होंने पुछा ऐसा कैसे संभव है मुझे मेरे प्रभि के अतरिक्त कोई भी नहीं हरा सकता। पर तुम तो कृष्ण हो और श्रीराम ने तो कहा था की मैं वासुदेव बनकर आऊंगा। और जैसे ही श्रीकृण ने कहा की वासुदेव भी वही है तो जामवंत त्राहि त्राहि करते श्रीकृष्ण के चरणों में गिर गए। और फिर श्रीकृष्ण ने जामवंत जी को श्रीराम के दिव्य स्वरुप में दर्शन दिया। तत्पश्चात जामवंत जी ने अपनी पुत्री जामवंती का विवाह श्रीकृष्ण से करा के स्वयं भगवान के धाम को चल दिए।

