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हनुमान जी का विकराल रूप और कुम्भकरण का संहार !


कुम्भकरण के आतंक से घबराये वानर वीरो की रक्षा के लिए जब लक्ष्मण जी आये, और कुम्भकरण पर दिव्यास्त्रों की वर्षा कर दी, तो कुम्भकरण ने अहंकार में आकर भगवान शिव के अमोघ त्रिशूल से लक्ष्मण जी पर प्रहार कर दिया। पर इसके बाद हनुमान जी ने कुछ ऐसा किया की कुम्भकरण की वीरता धरी की धरी रह गई।

दरअसल लंका युद्ध के नौवे दिन रावण की ओर से कोई भी राक्षस युद्ध भूमि में युद्ध करने नहीं आया, यह देख सभी वानर सोचने लगे सायद रावण अब श्रीराम की शरण में आने की सोच रहा होगा, पर ये मासूम वानर वीर गलत थे क्योकि तभी युद्ध भूमि में प्रवेश किया, शहस्त्र पर्वतो से भी विशालकाय, महाबली कुम्भकरण। 


कुम्भकरण के युद्ध भूमि में आते ही चारो ओर सिर्फ वानरों की चीख पुकार ही गूंज रही थी। कोई भी वानर सैनिक कुम्भकरण का सामना नहीं करना चाहता था और तभी कुम्भकरण के समक्ष आते है सेनापति नील तथा नल। पर नील नल सहित कई महावीर सेनापति मिलकर भी कुम्भकरण को तनिक भी हानि नहीं पंहुचा पा रहे थे। फिर अचानक एक बरा सा पर्वत कुम्भकरण के विशाल छाती से जा टकराया इससे कुम्भकरण को थोड़ी चोट लगी और वो बोल उठा। कौन हो वीर वानर, बरे तेजस्वी मालूम होते हो। कही तुम ही हनुमान तो नहीं।

इसपर उस वानर ने जबाब दिया, मैं किष्किंधा नरेश महाबलशाली बाली का पुत्र अंगद हूँ, यह सुन कुम्भकरण कुछ अपशब्द कहता हुआ अंगद जी पर प्रहार करने लगा और जब अंगद जी भी कुम्भकरण को रोक नहीं पाए तो युद्धभूमि की दिशा मोरने आये, लक्ष्मण जी। लक्ष्मण जी ने अपने लाखो बानो से कुम्भकरण पर प्रहार करना शुरू कर दिया पर वे भी कुम्भकरण को कोई क्षति पंहुचा नहीं पा रहे थे।


असल में कुम्भकरण बाल्यकाल से ही इतना विशालकाय और शक्तिशाली था कि वह एक ही दिन में लाखों प्राणियों को खा जाता। उसकी इस असिमित भूख को देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हो उठे, उन्होंने सोचा अगर कुम्भकरण ऐसे ही खाता रहा तो वो कुछ ही काल में सारे संसार का अन्न समाप्त कर देगा। और जब कुम्भकरण सहित तीनो भाइयो ने ब्रह्मा जी को अपने तपस्या से प्रशन्न किया तो कुम्भकरण इंद्रासन मांगना चाहता था लेकिन लेकिन देवताओं की प्रार्थना पर माता सरस्वती ने कुम्भकर्ण की जिह्वा पर विराजमान होकर उसके मुख से 'इंद्रासन' के स्थान पर 'निद्रासन' बुलवा दिया। इसपर ब्रह्मा जी ने तत्काल "तथास्तु" कह दिया पर जब कुम्भकरण को अपनी भूल का आभास हुआ, तो वह व्याकुल होकर ब्रह्मा जी से क्षमा मांगने लगा इसपर ब्रह्मा जी ने उसे छह महीने सोने और एक दिन जागने के साथ साथ कई सारे अस्त्र शस्त्र एवं अपार बल का वरदान दे दिया।

और जब लक्ष्मण जी अनेक बाण कुम्भकरण के शरीर से टकराकर निचे गिरने लगे तब लक्ष्मण जी ने अपना दिव्यास्त्र चलाना शुरू किया। इसे देख कुम्भकारा ने भी प्रगट किया भगवान शिव का वो अमोघ त्रिशूल जो किसी भी दिव्यास्त्र को नष्ट कर सकता था।  इसके बाद लक्ष्मण जी जितने भी दिव्यास्त्र चलाते, कुम्भकरण बरी आसानी से उसे नष्ट कर देता। ऐसा लग रहा था की अब कुम्भकरण को हराना अब संभव ही नहीं और तभी कुम्भकरण ने भगवान शिव का वो अमोघ त्रिशूल लक्ष्मण जी पर चला दिया।

यह देख लक्ष्मण जी सहित सभी वानर स्तब्ध रह गए। सब डर से थरथर कापने लगे किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था की लक्ष्मण जी अब इस अमोघ त्रिशूल से कैसे बचेंगे और तभी वहां आते है, महावीर हनुमान।

हनुमान जी ने आते है पहले कुम्भकरण द्वारा चलाये उस अमोघ त्रिशूल को पकरा और फिर अपने दोनों हाथो से ऐसा मोरा की त्रिशूल के दो टुकरे हो गए। कुम्भकारा को समझ ही नहीं आया की अचानक ये क्या हुआ, क्या कोई भगवान शिव के त्रिशूल को भी दो टुकरे में तोर सकता है। और तब शुरू हुआ हनुमान जी और कुम्भकरण के बीच वो भयानक युद्ध जिसका आप सभी को इन्तजार था।

पहले तो कुम्भकर्ण ने अपनी विशाल काया का पूरा फायदा उठाते हुए हनुमान जी को अपनी मुगदर से मारना चाहा, लेकिन पवनपुत्र तो पलक झपकते ही उसकी पहुँच से दूर हो जाते। हनुमान जी अपने शरीर को कभी छोटा करते, कभी विशाल रूप धारण कर लेते। वह कभी कुम्भकर्ण के कान में घुसकर उसे पीड़ा पहुँचाते, तो कभी उसकी नाक पर ज़ोरदार मुक्का मारकर उसे झकझोर देते।

हनुमान जी के निरंतर प्रहारों से कुम्भकर्ण अब घायल होने लगा था। उसका विशाल शरीर लहूलुहान हो गया। दर्द के मारे वह चीख़ रहा था और अपनी पूरी शक्ति लगाकर हनुमान जी पर पर्वतों की वर्षा करने लगा। हनुमान जी ने उन पर्वतों को भी अपनी गदा से तोड़ डाला और स्वयं एक विशाल पर्वत का रूप धारण कर, कुम्भकर्ण के सीने पर अत्यंत क्रोध से प्रहार किया। यह प्रहार इतना ज़ोरदार था कि कुम्भकर्ण धरती पर ऐसे गिरा जैसे कोई विशालकाय वृक्ष गिर गया हो।

कुम्भकर्ण जानता था कि सामने वाला वीर कोई साधारण योद्धा नहीं है। वह अब अपनी संपूर्ण बल और माया का उपयोग करने लगा। उसने अचानक युद्ध के बीच में एक छलावा किया।

जैसे ही हनुमान जी अपने अगले प्रहार के लिए तैयार हुए, कुम्भकर्ण ने मौका पाते ही, बिजली की गति से झपट्टा मारा और पास ही खड़े वानरराज सुग्रीव को अपनी बगल में दबा लिया।

कुम्भकर्ण तुरंत, गरजता हुआ, सुग्रीव को अपनी जीत का प्रतीक बनाकर लंका की ओर भागने लगा। सारे वानर घबरा गए। हनुमान जी भी सकते में थे कि यह क्या हो गया! उनका राजा कुम्भकर्ण की गिरफ्त में था।

जब किसी भी उपाय से कुम्भकर्ण नहीं रुका और सुग्रीव की चीख़ पुकार तेज होने लगी, तब वानरों ने एक स्वर में श्रीराम को पुकारा। 

और तब युद्धभूमि में प्रगट हुए स्वयं श्रीराम। श्रीराम ने तुरंत एक बाण चलाया वो बाण जैसे ही कुम्भकरण को लगा कुम्भकरण दर्द से चीखने लगा और तभी उसके हाथो से सुग्रीव छूट गए।

श्रीराम और कुम्भकरण के बीच भयानक युद्ध शुरू हुआ और अंत में श्रीराम ने इन्द्रास्त्र से कुम्भकरण का वद्ध कर दिया।

और इस वीडियो में देखिये की जब यमराज ने हनुमान जी की माता अंजना के प्राण हर लिए और जब हनुमान जी द्वारा माता अंजना के प्राण मांगने पर यमराज ने हनुमान जी पर ही यमदण्ड से प्रहार कर दिया तो हनुमान जी ने अत्यंत ही क्रोधित होकर ऐसा क्या किया की यमराज थर थर कांपने लगे। 


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