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अघासुर के जाल में फंसे बाल कृष्ण और किया अघासुर का संहार !

बाल कृष्ण द्वारा कई असुरो के वद्ध के बाद कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए एक ऐसे असुर को भेजा जो काल का दूसरा रूप था। नाम था अघासुर !

दरअसल वृंदावन के जंगलों में अपनी गैया चराने आये बाल कृष्ण तथा उनके ग्वाल-बालों ने आज कुछ बदला हुआ महसूस किया - सभी आश्चर्य से इधर उधर देख ही रहे थे की मनसुखा बोल उठा - अरे कृष्ण वो देखो ये गुफा कैसी है! आज से पहले तो यहाँ कभी नहीं देखी ! श्रीकृष्ण सहित सभी उस गुफा को देखते हुए उसके नजदीक पहुंचे और तभी बलराम जी बोल उठे - सावधान हो जाओ सब ये मुझे कोई असुर प्रतीत होता है। इसपर सभी ग्वालबालों ने मजाक उराते हुए कहा - ये गुफा और असुर ! लगता है बलराम को सब जगह असुर ही दिखाई देता है। 

सभी ग्वालबाल उस गुफा के अंदर प्रवेश किये, कृष्ण बलराम ने रोकना चाहा पर सभी ग्वालबालो की जिद्द के सामने वे विवस हो गए। जैसे ही सभी गुफा के अंदर प्रवेश किये अचानक गुफा का द्वार बंद होने से चारो ओर अँधेरा छा गया। सारे ग्वाल बाल डर से गए। 

असल में ये कंस का भेजा हुआ राक्षस अघासुर था जो एक विशाल अजगर के रूप को गुफा के रूप में बदल सारे ग्वाल बालो सहित कृष्ण बलराम को अपने पेट में समा चूका था। और अपने उदेश्य को पूरा होता देख अघासुर अब जाने लगा इससे अंदर फसे ग्वालबाल भूकंप जैसी स्तिथि का अनुभव कर रहे थे।  सारे ग्वालबाल बोल रहे थे - रक्षा करो कृष्ण! रक्षा करो! इस असुर से हमारी रक्षा करो। अब श्रीकृष्ण ने अपना आकर बढ़ाना शुरू किया और अंदर से ही अघासुर के पेट पर प्रहार करने लगे। उधर बलराम जी सभी ग्वालबालों को संभाले हुए थे।

तभी अचानक अघासुर के पेट के अंदर का तापमान बढ़ने लगा, जहरीली गैसें चारो ओर से ग्वालबालों को घेरने लगीं। और तभी एक डरावनी आवाज़ गूँजी— आज कोई नहीं बचेगा! तुम सभी मेरा भोजन हो। यह सुनते ही ग्वालबाल डर के मारे एक-दूसरे से लिपट गए। उन्हें लगा कि अब अंत निश्चित है।

लेकिन तभी, उस अंधेरे के बीच एक दिव्य प्रकाश पुंज दिखाई दिया। श्रीकृष्ण का शरीर किसी जलते हुए सूर्य की भांति चमकने लगा था। जैसे-जैसे कृष्ण का आकार बढ़ रहा था, अघासुर की गुफा जैसी देह अब तंग होने लगी थी। बाहर की तरफ, अघासुर का बुरा हाल था। उसकी आँखें उबलकर बाहर आने लगी थीं और उसकी खाल फटने को तैयार थी। 

और फिर... एक भयानक विस्फोट हुआ! धमाका इतना तेज था कि मीलों दूर तक धरती हिल गई। अघासुर का विशाल शरीर छिन्न-भिन्न हो गया। और तभी साक्षात् नारायण के रूप में श्रीकृष्ण बाहर निकले, जिनके पीछे बलराम जी सहित सभी ग्वाल-बाल भी सुरक्षित थे। सभी अघासुर के मृत शरीर को देख ही रहे थे की उसके शरीर से निकली एक काली छाया श्रीकृष्ण के चरणों में गिरकर दिव्य ज्योति में बदल गई। और इसप्रकार कंस का एक और असुर मृत्यु को प्राप्त हो चूका था। 


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