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माता सीता का महाकाली स्वरूप और सहस्रमुख रावण का संहार !


रावण मेघनाथ को धूल चटाने वाले अंगद हनुमान जी सहित सभी देवता थर थर काप रहे थे पर इसलिए नहीं की सहस्त्र मुख रावण ने श्रीराम को मूर्छित कर दिया है। बल्कि इसलिए की श्रीराम को मूर्छित देख माता सीता ने अत्यंत ही क्रोध में आकर महाकाली का ऐसा महाविनाशक स्वरूप धारण कर लिया है मानो उस सहस्रमुख रावण के साथ ही इस सृष्टि का भी अंत कर देंगी।


दरअसल श्रीराम के लंका विजय के पश्चात अयोध्या में उनका राज्याभिषेक होते ही श्रीराम अचानक बोल परे। भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न हनुमान सुग्रीव विभीषण अंगद जामवंत सहित सभी वानर वीर तथा अयोध्या के भी समस्त सेनापति सुने, हम अभी इसी समय पुष्करद्वीप की ओर युद्ध के लिए रवाना होंगे। किसी को कुछ समझ नहीं आया पर किसी में पलटकर प्रश्न करने की हिम्मत नहीं हुई।

श्रीराम माता सीता सहित सभी मुख्य योद्धा पुष्पक विमान पर सवार हुए, आज पहली बार था की माता सीता भी श्रीराम के साथ युद्ध में जा रही थी। और ये युद्ध इतना भयानक होने वाला था की अयोध्या में श्रीराम के राज्याभिषेक के अवसर पर उपस्थित वशिष्ट विश्वामित्र अगस्त्य आदि रिषी भी इस अद्वित्य घोर युद्ध में श्रीराम की सहायता हो चल परे।

युद्ध के लिए श्रीराम का आगमन ऐसा था मानो प्रलय होने वाला हो, पर श्रीराम ने लंकापति रावण को मारने के बाद अब अचानक इतना व्यापक आक्रमण किसपर और क्यों कर दिया वो भी माता सीता के साथ में।

असल में यह कथा अद्भुत रामायण में वर्णित है जब श्रीराम का राज्याभिषेक हो रहा था और सभी रिषी मुनि सहित देवता श्रीराम के अपार महिमा का गुणगान कर रहे थे। पर माता सीता को श्रीराम की ये प्रसंसा अत्यंत चुभ रही थी और तभी अगस्त्य रिषी ने श्रीराम माता सीता के सम्मुख आकर कहा,  हे राम, आपने रावण सहित उसके पुत्र मित्र तथा अन्य राक्षसों को संहार करके पृथ्वी का जो कल्याण किया है उसके लिए यह धरा सदा आपकी आभारी रहेगी। और यह सुनते ही माता सीता से रहा न गया और वे एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ हँस परी। यह देख पूरी सभा सन्न रह गई पर जब रिषी अगस्त्य ने माता के हसी का कारन पुछा तो श्रीराम से अनुमति लेकर वे बोल परी।

हे मुनिश्वरों, आपने रावण वध के कारन प्रभु की प्रसंसा में जो कुछ भी कहा वो मुझे मज़ाक सी प्रतीत होती है। इसमें कोई दो राय नहीं की रावण अत्यंत ही दुराचारी था, परन्तु उसका वध कोई विशेष प्रशंसा के योग्य बात नहीं। और जब रिषियो ने माता सीता से इसका कारन पुछा तो माता ने सकुचाते हुए कहा। 

हे रिषीगण मेरे विवाह से पूर्व जब मैं अपने पिता के घर में रहती थी, तब वहां एक अत्यंत ही तेजस्वी ब्राह्मण अतिथि रूप में आए। इसपर मेरे पिता ने मुझे उनकी सेवा में नियुक्त कर दिया, और जब मेरी दिनरात की सेवा से वे प्रशन्न हुए तो उन्होंने मुझे एक अत्यंत ही गुप्त रहस्य बताया।

उन्होंने कहा हे सीते! पृथ्वी के दूसरे छोर में जल के सागर से घिरे पुष्करद्वीप के एक राक्षस सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी का विवाह रिषी विश्रवा से किया, जिसके फलस्वरूप दो रावण का जन्म हुआ, पहला हजार मुख का रावण तथा दूसरा दस मुख का। और वही छोटा दस मुख का रावण भगवान शिव की कृपा से लंका में निवास कर रहा था तथा जो दशानन का बरा भाई सहस्रमुख सहस्त्रानन रावण अपने अपार बल को समेटे पुष्करद्वीप में रहने लगा। उस सहस्रमुख रावण का बल ऐसा है की सूर्य चन्द्रमा उसे जुगनू लगते है वो विशाल समुद्र को गाय के खुर के सामान समझता है तथा सुमेरु जैसे पर्वतो को राइ के दाने के समान समझता है।

और इस कथा को सुनाते ही माता सीता ने कहा, हे रिषीयो आप ही बताओ जब तक सहस्रमुख रावण जीवित है, तब तक राम राज्य समस्त संसार में कैसे व्याप्त हो सकता है।

श्रीराम ने तुरंत उस सहत्रामुख रावण के पुष्करद्वीप पर आक्रमण का आदेश दे दिया और इस बार माता सीता भी श्रीराम की सहायता के लिए साथ चल दी। पुष्करद्वीप पहुंचते ही श्रीराम ने अपने सारंग धनुष की प्रत्यंचा खींचकर ऐसा छोरा की ब्रह्माण्ड का कोना कोना उस ध्वनि से कांप गया। और तभी अपने पचपन पुत्रो तथा असंख्य राक्षसों के साथ युद्ध भूमि में आया, सहस्रमुख रावण।

सहस्रमुख रावण के आते ही युद्ध भूमि में कुछ मुख्य योद्धाओ के अतिरिक्त कोई भी सैनिक दिखाई नहीं दे रहे थे क्योकि उस सहस्रमुख रावण का तेज बारह सूर्यो के समान, दो हजार भुजाओं में अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र धारण किये हुए ऐसा लग रहा था मानो स्वयं महाकाल अपने विकराल रूप में प्रगट हो गए हो। उसकी क्रोध भरी गर्जना ऐसी थी मानो पृथ्वी अभी दो हिस्सों में बट जाएगी।

उसने अपने सामने जैसे ही श्रीराम को देखा तो क्रोधित स्वर में बोल उठा - तुम कौन हो जो मेरे पुर में सिंहनाद करने का साहस कर रहे हो। तुम्हे पता नहीं की इन्द्रादि लोकपाल मेरे दास हैं और मैं पाताल स्वर्ग तथा मनुष्यों को एक कर सकता हूँ।

अब श्रीराम कुछ बोलते उससे पहले ही आकाशवाणी हुई - हे सहस्रमुख रावण, ये समस्त जगत के स्वामी अयोध्यापति श्रीराम है। तुम इसके सामने समर्पण कर दो नहीं तो तुम्हारा अंत आज निश्चित है। पर सहस्रमुख रावण ने अट्टाहस करते हुए बोला, मैं अकस्मात आये इस शत्रु को अकेले ही वध करूँगा। आज इस पृथ्वी को मनुष्यो से रहित कर के चारो ओर राक्षसों का साम्राज्य स्थापित करूँगा।

और तब आरम्भ हुआ श्रीराम तथा सहस्रमुख रावण में एक ऐसा भयानक युद्ध जिसने सुकुमार माता सीता को महाकाली का विकराल रूप लेने पर विवश कर दिया।

श्रीराम ने उस सहस्रमुख रावण को कई बार चेताया की वो अधर्म छोरकर उनकी सरन में आ जाये पर इससे समझने की जगह वो और अधिक क्रोधित हो गया और अचानक एक अत्यंत ही दिव्य पन्नगास्त्र प्रगट कर श्रीराम पर प्रहार कर दिया। 

जैसे ही सहस्रमुख रावण ने श्रीराम के ऊपर पन्नगास्त्र का प्रहार किया वैसे ही वो बाण सुवर्णभूषित ऐसे भयंकर सर्प बन गए, जो मुख से अग्नि उगलते हुए तेजी से श्रीराम की ओर जा रहे थे। तब श्रीराम ने भी गरुरास्त्र का संधान कर सहस्रमुख रावण की ओर छोर दिया और वो बाण स्वर्णिम गरूर बनकर पन्नागास्त्र से उत्पन्न सर्पो को नष्ट कर दिया।

उस महाविशालकाय सहस्रमुख रावण ने जब ये देखा की श्रीराम राम ने उसके पन्नागास्त्र को नष्ट कर दिया है तो वह क्रोध से गर्जना करने लगा, और फिर अपने बाण से एक ऐसा अस्त्र चलाया की चारो तरफ विशाल पत्थरो की भयानक बारिस शुरू हो गई। इन पत्थरो की बारिस ऐसी भयानक थी की श्रीराम भी व्याकुल हो गए और फिर इससे अत्यंत क्रोधित होकर श्रीराम ने अगस्त्य मुनि के द्वारा दिए उस ब्रह्मदत्त महाबाण को चलाया जिससे दसानन रावण का वद्ध करते समय श्रीराम ने चलाया था।

श्रीराम के इस भयानक बाण को काल की भांति अपनी ओर आता देख सहस्रमुख रावण ने अपना स्वरूप और विशाल करना शुरू कर दिया और जैसे ही श्रीराम का ब्रह्मदत्त महाबान उसके करीब आया उसने अपने दोनों हाथो से बाण को पकर बाण के दो टुकरे कर डाले।

अपने अमोध बाण को व्यर्थ होता देख श्रीराम कुछ समय के लिए स्तब्ध हो गए और इसी समय का फायदा उठाकर उस सहस्रमुख रावण ने एक ऐसा बाण चलाया की वो बाण बिजली की गति से आकाश को चीरता हुआ श्रीराम की छाती में जा लगा और श्रीराम मूर्छित होकर गिर परे। श्रीराम के मूर्छित होने से चारो ओर भय का माहौल व्याप्त हो गया,

सारे रिषी मुनि विलाप करने लगे माता सीता को कुछ समझ नहीं आया की क्या हुआ वो विश्वास नहीं कर प् रही थी की श्रीराम मूर्छित हो चुके है और तभी रिषियो ने माता सीता को उलाहना देना शुरू कर दिया - हे सीते तुमने श्रीराम को इस सहस्रमुख रावण के बारे में क्यों बताया, जरा देखो तो श्रीराम की ये दशा हो गई।

चारो ओर से वानर भालुओ रिषीयो देवताओ की चीख पुकार सुन माता सीता का क्रोध बढ़ने लगा, उनका स्वरूप अब सीता से महाकाली का होने लगा। उन्होंने अपना अत्यंत विशाल स्वरूप लेकर क्रोध से गर्जना करते हुए युद्ध भूमि के राक्षसों का संहार करने लगी। वे अब माता सीता नहीं रही बल्कि अत्यंत भयानक महाकाली बन चुकी थी। उन्हें देख सभी राक्षस इधर उधर भागने लगे कोई भी उनका सामना नहीं करना चाहता था और तभी उनके सामने सहस्रमुख रावण आकर गर्जना करने लगा। दोनों की गर्जना ऐसी थी की तीनो लोक नष्ट होने के कगार पर था और तभी उस सहस्रमुख रावण ने अपने एक भयानक राक्षसी तलवार से माता महाकाली पर प्रहार कर दिया।

यह देख माता महाकाली का क्रोध इतना अधिक बढ़ गया की सबकुछ नष्ट होने लगा और माता महाकाली ने पहले तो अपने तलवार से एक ऐसा प्रहार किया की उस सहस्रमुख रावण का तलवार टुकरे टुकरे हो गया

और फिर अपने त्रिशूल से माता ने उस सहत्रामुख रावण को अत्यंत ही तीव्रता से काटना शुरू कर दिया। और कुछ ही समय में उस सहस्रमुख रावण के हजारो सर जमीन पर गिरे धूल खा रहे थे।

पर इसपर भी माता सीता का वो भयानक महाकाली स्वरूप शांत नहीं हुआ और वे अब गर्जना करती हुई समस्त संसार को नष्ट कर देना चाहती थी और

तभी युद्ध भूमि में मूर्छित श्रीराम के समक्ष प्रगट हुए, ब्रह्म देव। उन्होंने जैसे ही श्रीराम को स्पर्श किये वे तुरंत उठ बैठे और अपने पास माता सीता को न पाकर इधर उधर देखने लगे। तब ब्रह्मदेव ने उन्हें सब विस्तार से बताया और माता सीता के महाकाली स्वरूप को शांत करने के लिए प्रार्थना किया।

इसपर श्रीराम ने सीता सहस्त्रनाम का पाठ शुरू किया और इससे प्रशन्न होकर माता सीता का वो महाकाली स्वरूप शांत होने लगा। और कुछ ही छन में माता सीता अपने स्वरूप में आकर श्रीराम को प्रणाम करने लगी। श्रीराम की कृपा से इस युद्ध में मरे और घायल हुए सभी वीर पुनह जीवित और स्वस्थ होकर श्रीराम के साथ अयोध्या चल दिए। 


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