जब कोई भी यमदूत अयोध्या में प्रवेश नहीं कर पाया तो इससे क्रोधित यमराज स्वयं अयोध्या की ओर चल दिए। पर जैसे ही वे अयोध्या के मुख्य द्वार पर पहुंचे हनुमान जी ने उनका मार्ग रोक दिया और काफी कहासुनी के बाद भी जब हनुमान जी ने यमराज को अंदर नहीं जाने दिया तो यमराज ने क्रोधित होकर अपने भयानक यमदण्ड से हनुमान जी पर प्रहार कर दिया। पर वे शायद ये भूल गए वे सिर्फ काल है और हनुमान जी महाकाल।
दरअसल त्रेतायुग के अंत में श्रीराम की लीला समाप्त होने को थी, और तभी अचानक पूरे यमलोक में सोक मनाया जाने लगा। क्योकि कुछ देर पहले ही यमराज घायल अवस्था में कराहते हुए पृथ्वी से यमलोक में प्रवेश किये थे। किसी भी यमलोक वासी को ये समझ नहीं आ रहा था की क्या हुआ है और सभी के काल यमराज की ये दसा किसने की, ऐसा कौन पृथ्वी वासी है जो यमराज से भी शक्तिशाली है?
असल में यह सब कुछ दिन पहले हुए यमराज और चित्रगुप्त के बीच एक गंभीर बहस का परिणाम था। चित्रगुप्त ने यमराज से कांपते हुए कहा - प्रभू अब वो समय आ गया है जब आपको श्रीराम से पृथ्वीलोक छोरने का आग्रह करना होगा। पर इसमें एक बहुत ही बरी समस्या है। इसपर यमराज ने कहा - कैसी समस्या चित्रगुप्त साफ साफ बताओ।
तब चित्रगुप्त ने कहा - प्रभु अयोध्या में पिछले कई वर्षो से कोई भी यमदूत प्रवेश ही नहीं कर पाता। इस वजह से अयोध्या के किसी भी मनुष्य की मृत्यु नहीं हो पा रही, आप चाहे तो यमदूतो से पूछ सकते है। और तब यमराज के पूछने पर यमदुतो ने बताया की जब वे अयोध्या के समीप पहुंचते है तो अयोध्या के द्वार पर पहरा दे रहे एक वानर के शरीर से निकलता हुआ प्रकाश जैसे ही उनके शरीर पर परता है तो उनके शरीर जलने लगते है और इसलिए वे आगे नहीं बढ़ पाते।
तब यमराज के पूछने पर जब चित्रगुप्त ने ये बताया की वो वानर कोई और नहीं स्वयं हनुमान है तो यमराज ठहाके मारकर हँसते हुए कहने लगे - तुम लोग हनुमान से इतना डर रहे हो, मैं चाहू तो किसी प्राण ला सकता हूँ फिर वो हनुमान किस गिनती में है।
और इतना कहते ही यमराज अपने महिस भैसे पर सवार होकर अयोध्या को ओर चल परे, पर जैसे ही वे अयोध्या के द्वार पर पहुंचे, हनुमान जी उनके सामने आ गए।
हनुमान जी ने अत्यंत विनम्रता से प्रणाम करते हुए कहा - हे धर्मराज आप मृत्यु के देवता हैं, आपका यहाँ आना अशुभ संकेत है। कृपया बताएं आप यहाँ क्यों पधारे हैं। यमराज ने अपने अहंकार भरे स्वर में कहा, "हनुमान! मेरे मार्ग से हट जाओ! मैं यहाँ श्रीराम से मिलने आया हूँ क्योकि उन्होंने अपने लीला की जो अवधि निर्धारित की थी वो समाप्त हो चुकी है।
यह सुनते ही हनुमान जी ने दृढ़ता से कहा, हे यमदेव मेरे प्रभु की आज्ञा के बिना इस नगर में कोई प्रवेश नहीं कर सकता। और जब तक मैं जीवित हूँ, कोई भी शक्ति मेरे प्रभु को यहाँ से नहीं ले जा सकती। आप लौट जाइये!"
यमराज ने इसे अपना घोर अपमान समझा और गरजते हुए बोला। अरे मूर्ख वानर, तू काल को रोकने का दुस्साहस कर रहा है! मेरे मार्ग से हट जाओ नहीं तो मुझसे युद्ध करो। यमराज के ये कठोर स्वर और युद्ध की ललकार सुन हनुमान जी क्रोध से तिलमिला उठे। और फिर शुरू वो भयानक युद्ध जिसका आप सभी को इंतजार था।
क्रोधित होकर यमराज ने अपनी विशाल गदा से प्रहार किया इसपर हनुमान जी ने भी अपनी गदा उठाई और दोनों गदाओं की टक्कर से ऐसी भयंकर ध्वनि उत्पन्न हुई, मानो ब्रह्मांड फट परा हो! पर इस टकराव में यमराज की गदा के टुकरे-टुकरे हो गए!
और तब यमराज ने यह सोचकर अपना काल पाश हनुमान जी पर फेंका की वे हनुमान जी के प्राण को खींच लेंगे। पर हनुमान जी ने उसे हवा में ही पकरा और अपने दोनों हाथो से ऐसा खींचा की उसके टुकरे टुकरे हो गए।
अपनी पराजय समीप देख यमराज क्रोध से तिलमिला उठे, उन्होंने अपना सबसे प्रलयंकारी अस्त्र यमदंड निकाला और गर्जना करते हुए हनुमान जी पर अमोघ यमदण्ड से प्रहार कर दिया। उस प्रलयंकारी यमदंड को अपनी ओर आता देख हनुमान जी का शांत और सौम्य मुखमंडल प्रलयंकारी तेज से धधक उठा! उन्होंने अपना रूप इतना विकराल कर लिया कि यमराज उनके सामने एक चींटी के समान लगने लगे!
और जैसे ही वह अमोघ यमदंड उन तक पहुंचा, हनुमान जी ने अपना विशाल मुख खोला और उस अमोघ यमदंड को ठीक वैसे ही निगल गए जैसे उन्होंने भगवान शिव का त्रिशूल निगला था। यह देख यमराज के होश उर गए! और इसी समय क्रोधित हनुमान जी ने यमराज पर अपनी गदा से ऐसा प्रहार किया की यमराज दर्द से कराहते हुए भागने लगे उन्होंने युद्ध से पीछे हटना ही उचित समझा।
यमलोक पहुंचकर भी यमराज कांप रहे थे। वे पराजित हो चुके थे और अब उनके मन में हनुमान जी को परास्त करने की तीव्र इक्षा ने जन्म ले लिए था वे हनुमान जी से लरने के लिए अपने शक्ति को बढ़ने लगे।
उधर एक दिन हनुमान जी श्रीराम के चरणों को दबा रहे थे और श्रीराम सिंहासन पर बैठे कुछ सोचते हुए अपने हाथ से अंगूठी निकालकर निहार रहे थे तभी वह अंगूठी उनके हाथ से छूटकर फर्श की एक दरार में जा गिरी। श्रीराम ने तुरंत कहा हनुमान मेरी अंगूठी गिर गई! जल्दी लेकर आओ कही खो न जाये।
हनुमान जी ने तुरंत अति सूक्ष्म रूप धारण किया और उस अंगूठी के पीछे तीव्र गति से उर चले। पर यह क्या! हनुमान जी अपनी पूरी गति से उर रहे थे, पर वे अंगूठी को पकर ही नहीं पा रहे थे। उन्होंने पूरी पृथ्वी के कई चक्कर लगा दिए पर अंगूठी की गति और तीव्र होती गई। हनुमान जी पसीने-पसीने हो गए उनको समझ नहीं आ रहा था की प्रभु की ये कैसी लीला है।
इधर हनुमान जी अंगूठी के पीछे भाग रहे थे उधर यमराज अयोध्या की ओर दुबारा प्रस्थान कर चुके थे। तभी हनुमान जी ने देखा वह अंगूठी सुमेरु पर्वत की एक कंदरा में जा गिरी।
हनुमान जी तुरंत वहां पहुंचे।
पर गुफा के द्वार पर बैठे एक वानर ने उन्हें रोकते हुए कहा, कौन हो तुम? इसपर हनुमान जी ने कहा "मैं हनुमान हूँ।" यह सुनकर वह द्वारपाल वानर ठहाके मारकर हँसते हुए बोला! इतना दुर्बल (कमजोर) वानर हनुमान कैसे हो सकता है? और असली हनुमान जी तो अंदर हैं! यह सुन आश्चर्य से हनुमान जी ने अन्दर वाले हनुमान जी से मिलने की इक्षा जताई। जैसे ही द्वारपाल वानर अनुमति लेकर आया हनुमान जी ने अंदर प्रवेश किया। और अंदर आते ही उन्होंने एक ऐसे दिव्य वातावरण का अनुभव किया जो स्वयं श्रीराम के समीप होने से भी अधिक मनोरम था।
और तभी सामने सिंहासन पर बैठे एक अत्यंत ही दिव्य और विशाल हनुमान जी कहा - आओ हनुमान तुम्हारा स्वागत है। इसपर हनुमान जी ने कहा हम दोनो हनुमान कैसे हो सकते है? तो उन विशाल हनुमान ने कहा मैं पिछले कल्प का हनुमान हूँ और तुम इस कल्प के। कहो क्यों आये हो? तब हनुमान जी ने कहा मैं अपने प्रभु की अंगूठी लेने आया हूँ वो इसी गुफा में आई है। इसपर उन विशाल देहधारी हनुमान जी ने अंगूठी की एक विशाल ढेर को दिखाते हुए कहा - ले लो इसमें से जो भी हो। हनुमान जी उन सारी अंगूठी को आश्चर्य से देखते रह गए।
तब अंदर बैठे हनुमान जी ने समझाया, "जब-जब पृथ्वी पर श्रीराम अवतार की लीला पूर्ण होती है, श्री राम अपने हनुमान को इसी तरह अंगूठी लेने भेजते हैं। और यहाँ वो अंगूठी एक से दो हो जाती है, एक हनुमान लेकर चले जाते है दूसरी यही रह जाती है और यह लो तुम्हारी ये अंगूठी।
इधर हनुमान जी इस लीला में उलझे थे और उधर यमराज अपनी पूरी शक्ति से अयोध्या के द्वार पर पहुंचकर हनुमान जी को पुकारने लगे। और तभी वहां एक आकाशवाणी हुई हे धर्मराज - श्रीराम आपका इंतजार कर रहे है आप हनुमान के आने के पहले ही उनके महल पहुंचे।
यमराज ने अपना वेश बदला और तुरंत श्रीराम के भवन में प्रवेश किया। श्रीराम ने उन्हें बैठने को कहा - तब यमराज ने प्रणाम करते हुए कहा प्रभु हमारा आपका ये वार्तालाप अत्यंत ही गुप्त है इसे कोई न सुन पाए ऐसा उपाय करे और जो भी इसे सुने उसे मृत्युदंड दे दिया जाय।
इसपर श्रीराम ने द्वार की रक्षा का ये भार लक्ष्मण जी को दिया और कहा जबतक मैं न बोलू कोई मेरे कक्ष ने न आ पाए नहीं तो उसे मृत्युदंड दे दिया जायेगा। लक्ष्मण जी द्वार पर पहरा देने लगे और अंदर यमराज अपने वेश में आकर श्रीराम से उनकी लीला की अवधि समाप्त होने और उनके धाम प्रस्थान के विषय में बात करने लगे।
लक्ष्मण जी द्वार पर पहरा देते हुए टहल रहे थे तभी वह रिषी दुर्वाशा आ गए और श्रीराम से तुरंत मिलने का हट करने लगे और जब लक्ष्मण जी ने उन्हें रोका तो वे क्रोधित होकर पूरे अयोध्या को शाप देने की धमकी देने लगे।
इसपर लक्ष्मण जी ने मज़बूरी में श्रीराम और यमराज के वार्तालाप में बीच में ही महल में प्रवेश किया। यह देखते ही यमराज तुरंत ही अदृश्य हो गए और इसी घटना के फलस्वरूप श्रीराम ने जब लक्ष्मण जी को त्याग दिया तो लक्ष्मण जी ने सरयू नदी में जलसमाधि ले ली।

