किष्किंधा का राजा बाली, अपने पिता इंद्र से प्राप्त स्वर्ण हार जो किसी की भी आधी शक्ति खींच सकता था उसे पहने अपनी विशाल गदा के साथ जिधर भी जाता उधर त्राहि त्राहि मचा देता।
यहाँ तक की रावण तथा अन्य राक्षस भी बाली के नाम से ही थर थर कापने लगते।
इसपर बाली को लग रहा था वो अजेय है और वो संसार में किसी को भी हरा सकता है। और इसी अहंकार में उसने महाबली हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा और उनकी आधी शक्ति अपने अंदर खींचना शुरू कर दिया।
पर उसे सायद हनुमान जी के अपार शक्ति का अंदाजा ही नहीं था की वह अपने ही काल को ललकार रहा है।
दरअसल बाली जो इंद्र पुत्र होने के कारन अपार शक्तियों का स्वामी था। उसका सबसे ताकतवर अस्त्र था उसके गले का वो स्वर्ण हार जो उसे अपने पिता इंद्र से प्राप्त हुआ था। वही हनुमान जी रिषी के शाप के कारन अपने शक्तियों को भूले सुग्रीव के मंत्री के रूप में कार्यरत थे।
हनुमान जी अपना ज्यादा समय पहार की कंदराओ में राम नाम जप करते हुए बिता रहे थे और बाली भी किष्किंधा की प्रजा का उत्तम प्रकार से देखभाल करते हुए सासन कर रहा था।
पर इसी बीच राक्षस राज रावण ने कुछ ऐसा किया की बाली एक अच्छे शासक से अहंकारी वानर बनकर रह गया।
असल में जब लंकापति रावण तीनों लोकों के देवी देवताओ को जितने के बाद भी अशांत था क्योकि उसे पता था की उसका वद्ध वानर और मनुष्य के हाथो अभी भी संभव है और तब उसने सोचा की अगर वानरों के राजा बाली जो मेरे समान ही शक्तिशाली है उसे हरा दू तो वानरों से मृत्यु का भय समाप्त हो जायेगा।
और तब रावण अपने पुष्पक विमान से समुद्र तट पर संध्या वंदन कर रहे बाली के समक्ष पहुंचकर युद्ध के लिए ललकारने लगा।
रावण ने सोचा था कि वह आसानी से बाली को मार देगा। पर बाली ने अपना स्वरुप बरा किया और रावण को अपनी बायीं कांख में दबाकर अपनी संध्या वंदन करने लगा। पर संध्या वंदन के बाद भी बाली ने रावण को आजाद नहीं किया। लगभग छह महीने तक बाली ने रावण को अपनी कांख में दबाये हुए ही अपना जीवन व्यततीत करने लगा। बाली के उछल कूद में पेरो से टकराते, पहारो से रगर खाते! पूरे छह महीने तक बाली ने रावण को इसी तरह अपनी बगल में दबाकर घुमाया। और जब रावण इस पीरा को सहन नहीं कर पाया तो वह बाली के समक्ष गिरगिराते हुए क्षमा मांगने लगा। इसपर बाली ने दया कर के रावण को मुक्त कर दिया पर चालाक रावण ने बाली को अपना मित्र बना लिया।
अब रावण जैसे महाबली को हराने के बाद बाली का अहंकार चरम पर था और वह हर जगह कहता फिरता इस संसार कोई नहीं जो मुझे परास्त कर सके। मैं सर्वशक्तिमान हूँ, मैंने रावण को भी हराया है। उसकी यह अहंकार पूर्ण गर्जना जब अधिक बढ़ गई तो जामवंत जी से रहा नहीं गया और उन्होंने क्रोध में बोला, हे वानरराज आप अहंकार वस् खुद को सबसे शक्तिशाली बता रहे है पर असल में आपकी शक्ति हनुमान के सामने कुछ भी नहीं।
इसपर ठहाके मारकर हसता हुआ बाली बोला कौन वो हनुमान, उसके पास शक्ति भी है, जानकर आश्चर्य हुआ! वो तो हमेशा गुफाओ में मुँह छुपाये रह रह कहता रहता है। उससे मेरी क्या तुलना। पर जामवंत तुम कह रहे हो तो मैं उसकी भी जीवनलीला समाप्त कर ही देता हूँ।
फिर क्रोध और अहंकार से गरजता हुआ बाली हनुमान जी को ढूंढते हुए उस वन में पंहुचा जहा हनुमान जी तपस्या कर रहे थे। वह अपनी विशाल गदा से पर्वतों पर प्रहार करता हुआ, वृक्षों को तिनके की भांति उखारकर फेंकता हुआ और सिंह की भांति गर्जना करते हुए हनुमान जी को ललकार कर कह रहा था।
"कहाँ है वो हनुमान? कहाँ छुपा है वो तपस्वी? आज मैं उसकी जीवनलीला समाप्त करके ही किष्किंधा लौटूंगा!"
इधर शांत वन में जहाँ केवल पक्षियों का कलरव और झरनों का संगीत था, पवनपुत्र हनुमान एक शिला पर बैठे "राम-राम" कहते हुए ध्यान में लीन थे। तभी बाली का अहंकार भरा कोलाहल उस शांत वातावरण में विष घोलने लगा। वह गरज गरज कर कहता "है कोई जो मुझसे युद्ध कर सके? कोई है जो बाली को परास्त कर सके?
हनुमान जी ने पहले तो उसे अनदेखा करने का प्रयास किया, क्योंकि उनकी तपस्या में विघ्न पर रहा था। परंतु जब बाली उनके समक्ष आकर उन्हें युद्ध के लिए ललकारने लगा, तो हनुमान जी ने अपनी आँखें खोलीं और अत्यंत विनम्रता से कहा: "हे किष्किंधा नरेश, हे देवराज इंद्र के पुत्र! आप निसंदेह इस संसार के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से एक हैं। आपको कोई नहीं हरा सकता। परंतु इस शांत वन और इन निर्दोष वृक्षों पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं? इसपर बाली ने अत्यंत अपमानजनक शब्दों में अट्टहास करते हुए कहा: "चुप हो जा वानर! मुझे ज्ञान मत दो मुझसे युद्ध करो या मरने के लिए तैयार हो जाओ।
यह सुनते ही हनुमान जी का शांत और सौम्य मुखमंडल प्रलयंकारी तेज से धधक उठा। उन्होंने अपनी गदा उठाई और बाली के युद्ध की चुनौती स्वीकार कर ली।
यह कोई साधारण युद्ध नहीं होने वाला था। यह था दो महाशक्तियों का टकराव - एक ओर दिव्य वरदान से युक्त बाली, तो दूसरी ओर स्वयं रुद्र के अवतार, पवनपुत्र हनुमान!
जैसे ही युद्ध का दिन निश्चित हुआ, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। और जैसे ही हनुमान जी युद्ध के लिए निकलने को हुए तो स्वयं परमपिता ब्रह्मा उनके समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने हनुमान जी को समझाने का प्रयास किया कि वे बाली से युद्ध न करें। पर हनुमान जी ने कहा मैंने बाली के युद्ध की ललकार को स्वीकीर किया है और अब युद्ध न करना कायरता होगी।
तब ब्रह्मा जी ने एक अद्भुत सुझाव दिया। उन्होंने कहा: "ठीक है हनुमान, तुम युद्ध के लिए जाओ, परंतु अपनी केवल दसवें हिस्से की शक्ति का ही प्रयोग करना। अपनी बाकी की शक्ति अपने आराध्य के चरणों में समर्पित कर दो। युद्ध के बाद तुम वह शक्ति पुनः प्राप्त कर सकते हो। क्योकि अगर तुम पूर्ण शक्ति के साथ बाली से युद्ध करने गए तो वह तुम्हारे विकराल रूप के तेज से ही जलकर भष्म हो जायेगा और इससे श्रीराम की भविष्य में होने वाली लीला में विघ्न पर जायेगा।
यह सुन हनुमान जी ने परमपिता ब्रह्मा की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी अपार शक्ति का केवल दसवां अंश ही अपने पास रखा और शेष शक्ति को प्रभु श्री राम के चरणों में समर्पित कर दिया। और अब आता है वो रोमांचक क्षण जिसका सबको इंतज़ार था!
हनुमान जी युद्ध भूमि में पहुंचे। सामने बाली अपने स्वर्ण हार को पहने, अहंकार से मुस्कुरा रहा था। जैसे ही हनुमान जी ने युद्ध भूमि में अपना पहला कदम रखा और उनकी दृष्टि बाली से मिली, बाली के दिव्य वरदान ने अपना काम करना शुरू कर दिया!
हनुमान जी की आधी शक्ति - यानी उनकी कुल शक्ति का केवल 5 प्रतिशत - बाली के शरीर में प्रवेश करने लगी!
और फिर बाली को अचानक अपने शरीर में अपार शक्ति का अनुभव हुआ जो उसने आज तक महसूस नहीं की थी! उसे लगा जैसे सहस्त्र सूर्यों की ऊर्जा उसके भीतर समा रही है। वो सोचने लगा, मेरे अंदर कितनी अधिक शक्ति आ रही है! अब मैं शर्वशक्तिमान बन जाऊंगा। परंतु अगले ही पल बाली का शरीर उस प्रचंड ऊर्जा के वेग को सह न सका और गुब्बारे की तरह फूलने लगा!
उसकी नसें फटने को हो गईं! उसके आँख, नाक और मुंह से रक्त की धारा बह निकली! बाली को समझ ही नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है! तभी उसका शरीर इतनी अधिक शक्ति को संभाल नहीं पाया और असहनीय पीरा से चीखने लगा।
जैसे ही बाली का शरीर उस दिव्य शक्ति के तेज से फटने वाला था, आकाश में भयंकर गर्जना हुई और बाली के समक्ष स्वयं ब्रह्मा जी प्रकट हुए!
ब्रह्मा जी ने गंभीर स्वर में कहा: "बाली! यदि अपने प्राण बचाना चाहते हो तो अभी इसी क्षण हनुमान से जितना दूर भाग सकता है, भाग जा! अन्यथा तुम्हारा शरीर इस शक्ति के भार को सहन नहीं कर पाएगा और टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा!
बाली को कुछ समझ नहीं आया, परंतु साक्षात ब्रह्मदेव को अपने समक्ष देख वो समझ गया कि स्थिति बहुत गंभीर है। वो तुरंत युद्ध भूमि से पलटा और अंधाधुंध भागने लगा! वो सैकड़ों मील तक बिना रुके भागता रहा, भागता रहा!
अंत में, जब वो बहुत दूर निकल गया, तब जाकर उसके शरीर को कुछ राहत मिली और वो थक कर धरती पर गिर परा और बेहोश हो गया। कुछ समय बाद जब बाली को होश आया, तो उसने फिर से परमपिता ब्रह्मा को अपने सामने खड़ा पाया।
ब्रह्मा जी ने उसे समझाया: "हे बाली, तुम स्वयं को संसार में सबसे शक्तिशाली समझते हो, परन्तु तुम्हारा शरीर हनुमान की शक्ति का एक छोटा सा अंश भी नहीं संभाल पाया। हनुमान तो मेरी आज्ञा से अपनी कुल शक्ति का केवल दसवां हिस्सा लेकर तुमसे युद्ध करने आया था। और तुम्हारे वरदान के अनुसार उसकी भी आधी शक्ति - यानी केवल 5 प्रतिशत ही - तुम्हारे शरीर में आई। और देखो, तुम्हारा शरीर उसे भी धारण नहीं कर पाया!
सोचो बाली, यदि हनुमान अपनी संपूर्ण शक्ति लेकर तुमसे युद्ध करने आते, तो तुम्हारा क्या होता? तुम्हारा शरीर तो एक क्षण में ही भस्म हो जाता!"
यह सुनकर बाली की आँखों से अहंकार का पर्दा हट गया। उसे अपनी भयंकर भूल का एहसास हुआ। उसे समझ आया कि वो किस महाशक्ति से टकराने चला था।
बाली तुरंत हनुमान जी के पास लौटा और उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा।

