अहिरावण की देवी पाताल भैरवी ने हनुमान जी के प्रणाम के बदले उनपर एक अत्यंत ही भयानक प्रहार कर दिया और इससे हनुमान जी कराहते हुए जमीन पर गिर परे। अहिरावण भी ठहाके मारकर उनका मजाक उराते हुए कहने लगा, तुच्छ वानर मैंने तुम्हारे पहरे में होते हुए भी तुम्हारे राम लक्ष्मण का अपहरण कर लिया,
यह सुन जैसे ही हनुमान जी ने अपनी गदा से अहिरावण पर प्रहार किया वैसे ही अहिरावण की रक्षा कर रही देवी पाताल भैरवी ने हनुमान जी पर एक और विनाशकारी प्रहार कर दिया, इसपर हनुमान जी ने क्रोधित होकर अपना रूप अत्यंत ही विकराल कर कुछ ऐसा किया की अहिरावण की देवी पाताल भैरवी डरकर भागने लगी।
दरअसल माया भ्रम और कपट की दुनिया में अहिरावण, रावण-तथा-मेघनाथ से कई हजार गुना अधिक शक्तिशाली एवं प्रवीण था, अहिरावण को मारना संसार में किसी के लिए संभव नहीं था क्योकि उसके प्राण उसके शरीर में थे ही नहीं। और अगर कोई उसको मारने की मनसा से पाताल आ भी जाये तो मकरध्वज जो एक अत्यंत ही शक्तिशाली वानर था वही उसे मार डालता।
पर अगर कोई मकरध्वज को भी हरा दे तो भी वह अहिरावण तक पहुंच भी नहीं सकता था क्योकि उसकी रक्षा उसकी तांत्रिक देवी पाताल भैरवी अपनी सहायक शक्तियों के साथ करती थी।
इस प्रकार अहिरावण तीनो लोक में अजेय था और इस बात को लंकेश रावण भली भाती जानता था तभी तो जब रावण अपने सबसे शक्तिशाली पुत्र मेघनाथ के वध से हताश हो गया तो उसने अपने भाई अहिरावण को सहायता के लिए बुलाया।
पर शुरू में तो अहिरावण ने इस युद्ध में शामिल होने से सीधे-सीधे मना कर दिया पर जब रावण ने उसे विश्वास दिलाया कि यदि वह राम और लक्ष्मण को पकरकर अपनी देवी पाताल भैरवी को बलि के रूप में अर्पित कर देता है, तो उसकी देवी अत्यंत ही प्रसन्न हो जाएगी और उसे मनचाहा वरदान और अपार शक्ति देगी। इससे वह और भी अधिक शक्तिशाली हो जायेगा।
अधिक शक्तिशाली होने के लालच ने अहिरावण को श्रीराम लक्ष्मण के अपहरण के लिए प्रेरित किया। और उसने रावण की बात मानते हुए तुरंत ही श्रीराम लक्ष्मण का अपहरण करने निकल परा।
विभीषण जी के गुप्तचर ने तुरंत ही उन्हें रावण-अहिरावण के इस वार्तालाप से अवगत कराया, इसपर बिना समय गवाए विभीषण जी ने श्रीराम लक्ष्मण को आगाह किया और हनुमान जी से उनकी रक्षा करने का अनुरोध किया। हनुमान जी ने तुरंत अपनी पूँछ से कुटिया के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाया और चौकन्ने होकर पहरा देने लगे। अहिरावण जैसे ही उस कुटिया के पास पंहुचा उसने हनुमान जी को पहरा देते हुए देखा और फिर उसने कुछ ऐसा किया की हनुमान जी सारी शक्ति धरी की धरी रह गई।
अहिरावण ने तुरंत अपनी माया का उपयोग करते हुए विभीषण जी का रूप धारण किया और हनुमान जी को चकमा देकर उस कवच को भेद दिया । जैसे ही उसने अंदर प्रवेश किया सबसे पहले उसने श्रीराम लक्ष्मण पर निद्रा मंत्र का प्रयोग कर उन्हें अचेत कर दिया और फिर अपनी मायावी शक्तियों से आसानी से उन्हें पाताल लोक ले जाकर अपनी देवी पाताल भैरवी के समक्ष रखकर बलि देने के लिए अर्धरात्रि होने की प्रतीक्षा करने लगा।
अहिरावण को लग रहा था बस कुछ देर में ही वह अपनी देवी को बलि देगा और महाशक्तिशाली हो जायेगा पर आगे कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना उसने सपने में भी नहीं की थी।
असल में अहिरावण की देवी पाताल भैरवी जिसे कई संस्करणों में महामाया या महाकाली के नाम से जाना जाता है। वो पाताल भैरवी दस महाविद्याओं में से एक थी और भगवान शिव के उग्र रूप भैरव की शक्ति थी। पाताल लोक में देवी का यह रूप अत्यंत ही उग्र एवं नरबलि को स्वीकार करने वाला था। जिससे अहिरावण आजतक शक्ति प्राप्त करता आया था। वह देवी तांत्रिक रूप मुंडमाला धारण किए हुए, लाल वस्त्र पहने हुए और तीन नेत्रों में अत्यंत ही भयानक दिखती थी। उनकी इस प्रतिमा के समक्ष श्रीराम लक्ष्मण अचेत अवस्था में परे थे और बगल में बैठकर मंत्र पढता हुआ अहिरावण सोच रहा था अब कोई नहीं जो मुझे महाशक्तिशाली होने से रोक सकता है। पर उसे ये पता नहीं था की श्रीराम के परम प्रिय हनुमान की शक्ति कितनी है वे क्या क्या कर सकते है।
उधर कुटिया की सुरक्षा कर रहे हनुमान जी के समक्ष जब विभीषण जी आये तो हनुमान जी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। हनुमान जी ने तुरंत कहा विभीषण जी आप तो कुछ देर पहले ही कुटिया में गए थे, इसपर विभीषण जी को सब समझ आ गया की अहिरावण ने उन्ही का रूप धर कर हनुमान जी को चकमा दे दिया है। जल्दी से दोनों जब कुटिया के अंदर गए तो वहां पर श्रीराम लक्ष्मण को नहीं पाकर हनुमान जी क्रोध से तमतमा उठे और बोले विभीषण जी मुझे जल्दी पाताल लोक का पता बताइये मैं अपने प्रभु को कुछ नहीं होने दूंगा।
तब विभीषण जी ने कहा हनुमान जी आप वहां मत जाईये क्योकि अहिरावण की रक्षा कर रही तांत्रिक देवी पाताल भैरवी आपको अहिरावण के पास पहुंचने ही नहीं देगी। और आप उनसे युद्ध जीत नहीं पाएंगे क्योकि वो दस महाविद्याओं में से एक भगवान शिव के उग्र रूप भैरव की शक्ति है।
इसपर हनुमान जी ने कहा, आज स्वयं शिव भी आ जाये तो उनसे भी मैं युद्ध कर के अपने प्रभु को बचाऊंगा और तब विभीषन जी ने पाताल लोक जाने की युक्ति बताते हुए कहा आपके पास अर्धरात्रि तक का ही समय है हनुमान जी।
इतना सुनते ही हनुमान जी ने तुरंत ही श्रीराम लक्ष्मण को बचाने के लिए पाताल लोक की ओर प्रस्थान किया।
पाताल लोक के द्वार पर ही हनुमान जी का सामना एक शक्तिशाली वानर मकरध्वज से हुआ। हनुमान जी ने पहले तो मकरध्वज से अंदर जाने देने की विनती की पर जब वह नहीं माना और हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारने लगा तो हनुमान जी खुद को रोक नहीं पाए और फिर शुरू हुआ हनुमान जी और मकरध्वज के बीच एक ऐसा भयानक युद्ध जिसने हनुमान जी से जुरे एक ऐसे रहस्य से पर्दा हटाया जिसके बारे में हनुमान जी भी कुछ नहीं जानते थे।
असल में मकरध्वज से युद्ध करते हुए हनुमान जी को बरा ही आश्चर्य हो रहा था क्योकि मकरध्वज का प्रत्येक प्रहार हनुमान जी के एकदम समकक्ष एवं सटीक था। काफी देर युद्ध होने के बाद भी जब कोई नहीं हारा तो हनुमान जी ने युद्ध रोककर उससे पूछा, वानर कौन हो तुम? इसपर मकरध्वज ने कहा, मैं महाबली हनुमान का पुत्र मकरध्वज हूँ और अहिरावण मेरे स्वामी है। तब हनुमान जी ने कहा, मैं ही हनुमान हूँ पर मेरा कोई पुत्र नहीं, तुम झूठ बोल रहे हो। इसपर मकरध्वज ने कहा मैं असल में आपके पसीने से तब उत्पन्न हुआ जब आपने लंका दहन कर समुद्र में आग बुझाई, और आपके पसीने को एक मगरमच्छ ने पी लिया जिससे मेरा जन्म हुआ।
इसपर हनुमान जी ने कहा पुत्र मेरा अंदर जाना अत्यंत ही आवश्य है मुझे जाने दो, पर मकरध्वज ने कहा मैं भी आपकी ही तरह स्वामी भक्त हूँ आपको मुझे परास्त कर के ही जाना होगा। और फिर दुबार शुरू हुआ हनुमान जी और मकरध्वज में बीच एक और युद्ध पर इसबार मकरध्वज अपने पिता से परास्त होने के लिए लर रहा था और कुछ ही देर में हनुमान जी ने मकरध्वज को परास्त कर बंदी बना लिया और फिर बिना समय गवाए अंदर प्रवेश किया।
हनुमान जी को लगा की उन्होंने मकरध्वज को हराकर अहिरावण तक पहुंचने का रास्ता साफ कर लिया है पर उनकी यह गलतफयमी तुरंत ही दूर हो गई
क्योकि अहिरावण के महल के पास पहुंचते ही उनके सामने अत्यंत ही विकराल रूप में कोई देवी आ गई और हनुमान जी का रास्ता रोककर खरी हो गई। हनुमान जी को लगा की यह अहिरावण की देवी पाताल भैरवी है और इसलिए उन्होंने हाथ जोरकर उनसे प्रार्थना किया की माता मुझे अंदर जाने दो मेरे प्रभु के प्राण संकट में है। और तभी उस देवी ने अपनी मायावी शक्ति से हनुमान जी पर प्रहार करना शुरू कर दिया। इसपर हनुमान जी ने जब अपनी गदा से प्रहार किया तो वह देवी एक से दो हो गई और दूसरे प्रहार में दो से तीन हो गई। ऐसे ही हनुमान जी जितने प्रहार करते उस देवी की संख्या और उसका प्रहार बढ़ता जाता। इससे हनुमान जी अत्यंत ही परेशान हो गए और श्रीराम का ध्यान करने लगे।
असल में यह कोई देवी नहीं थी यह तो अहिरावण की बस काल्पनिक माया थी जिसका प्रयोग कर अहिरावण हनुमान जी का समय नष्ट कर रहा था। ताकि हनुमान जी अर्धरात्रि तक उनके पास पहुंच न सके और वो श्रीराम लक्ष्मण का बलि अपनी देवी पाताल भैरवी को दे कर महाशक्तिशाली बन जाये।
हनुमान जी ने जैसे ही श्रीराम का ध्यान किया अहिरावण की माया नष्ट हो गई। और तब हनुमान जी आगे बढे, पर सफलता नहीं, एक संकट की ओर, पाताल भैरवी रूपी संकट हनुमान जी का इंतजार कर रहा थी।
जैसे ही हनुमान जी सूक्ष्म रूप में देवी पाताल भैरवी के कक्ष में पहुंचे उनकी आँखे नम हो गई। उन्होंने देखा श्रीराम लक्ष्मण अचेत अवस्था में परे हुए है और अहिरावण उनको बलि देने के लिए एक तांत्रिक यज्ञ कर रहा है और सामने देवी पाताल भैरवी की भयानक मूर्ति है।
तभी अचानक हनुमान जी पर किसी ने एक भयानक कटार से प्रहार किया तो हनुमान जी ने खुद को संभाला और बोले कौन हो तुम! इसपर कुछ जबाब तो नहीं मिला पर बदले में मिला एक और प्रहार जो पहले से भी अधिक घातक था।
असल में हनुमान जी के अंदर प्रवेश करने का पता देवी पाताल भैरवी को पहले ही चल चूका था और वो ये भी समझ चुकी थी की हनुमान जी अहिरावण को मारने आये है। इसीलिए उन्होंने हनुमान जी पर प्रहार करना शुरू कर दिया था पर अब हनुमान जी सतर्क थे और उन्हें पता था की देवी पाताल भैरवी असल में भगवान शिव की ही शक्ति है और अगर ये चाहे तो पूरे संसार को एक छन में समाप्त कर सकती है।
इसलिए वे देवी पाताल भैरवी पर कोई घातक प्रहार नहीं कर रहे थे बस उनके प्रहार को रोक रहे थे। तभी देवी पाताल भैरवी ने अपनी शक्तियों से हनुमान जी को बंदी बना लिया और बोली तुम मेरे होते हुए अहिरावण को कभी भी मार नहीं पाओगे। तब हनुमान जी ने कहा माता आप अधर्म का साथ दे रही है, श्रीराम को पहचानिये श्रीराम असल में नारायण है वे धर्म के अवतार है।
पर इससे भी जब वो शांत ना हुई तो हनुमान जी ने अपना रूप अत्यंत ही विशाल कर लिया और तब देवी पाताल भैरवी को समझ आ गया की हनुमान कोई आम वानर नहीं बल्कि स्वयं शिव का ही रूप है और फिर उन्होंने कहा ठीक है हनुमान, कहो तुम क्या चाहते हो।
इसपर हनुमान जी ने कहा आप अपने स्थान से निचे चले जाइये मैं आपके स्थान पर आ जाता हूँ। इसपर देवी पाताल भैरवी निचे तो चली गई पर अभी शांत हुई देवी पाताल भैरवी ने अंत में कुछ ऐसा किया की हनुमान जी को उनका संहार करना परा।
अब अहिरावण अपने तांत्रिक यज्ञ के अंत के करीब था और जैसे ही उसने अपने भयानक तलवार से श्रीराम लक्ष्मण की बलि देना चाहा, देवी पाताल भैरवी के मूर्ति में बैठे हनुमान जी ने देवी के स्वर में कहा, रुको वत्स अहिरावण! यह तुम क्या करने जा रहे हो, तुम जिसकी बलि देने जा रहे हो वे तो जगत पिता नारायण है, उन्हें प्रणाम करो, इसी में तुम्हारा कल्याण है। इसपर अहिरावण हो बरा ही आश्चर्य हुआ की आज उसकी देवी ऐसा क्यों बोल रही है, उसने तुरंत अपनी माया से जान लिया की यह उसकी देवी की आवाज नहीं बल्कि राम भक्त हनुमान है और उसने तुरंत अपनी तलवार से श्रीराम लक्ष्मण पर प्रहार कर दिया।
जैसे ही प्रहार हुआ हनुमान जी वायु की गति से देवी की मूर्ति से निकलकर अपने गदे से एक ऐसा प्रहार किया की अहिरावण तलवार सहित दूर जा गिरा। और फिर शुरू हुआ हनुमान जी और अहिरावण का भयानक युद्ध जिसने तीनो लोक का संतुलन बिगार दिया।
अहिरावण ने तुरंत अपनी देवी पाताल भैरवी का स्मरण किया और उनसे प्राप्त सभी वरदानी शक्तियों को जागृत करने लगा, इधर हनुमान जी भी जयश्रीराम का उद्घोस करते हुए अपना आकर और विशाल करते जा रहे थे।
दोनों योद्धाओं को देखकर ऐसा लग रहा था आज ही सारी सृष्टि का विनास हो जायेगा। दोनों के बीच एक अद्वितीय भयानक युद्ध शुरू हो गया, अहिरावण ने अपने हजारो मायावी अस्त्रों से हनुमान जी पर प्रहार किया और हनुमान जी ने अपने गदा से उन सभी अस्त्रों को नष्ट कर दिया। जब हनुमान जी के गदा के प्रहार को अहिरावण झेल नहीं पाया और हार के कगार पर पंहुचा तब उसने अपनी देवी पाताल भैरवी को अपने अंदर प्रवेश कर हनुमान जी से युद्ध करने का आवाहन किया और तब कुछ ऐसा हुआ की हनुमान जी की आँखे फटी की फटी रह गई।
असल में जबसे हनुमान जी का युद्ध अहिरावण के शरीर में उपस्थित देवी पाताल भैरवी से शुरू हुआ तबसे अहिरावण का प्रहार इतना घातक हो गया की हनुमान जी भी उसे रोक नहीं पा रहे थे और यहाँ तक की अगर कोई प्रहार हनुमान जी करते तो उसका अहिरावण पर कोई असर ही नहीं पर रहा था। मानो उसके शरीर में आत्मा ही नहीं हो।
हनुमान जी को इससे बरा ही आश्चर्य हुआ की मेरे किसी भी प्रहार का अहिरावण पर कोई भी प्रभाव नहीं हो रहा है और तब जैसे ही हनुमान जी ने श्रीराम का ध्यान किया वैसे ही उन्हें अहिरावण के आत्मा का वो रहस्य पता चला जिसे जाने बिना अहिरावण का अंत असंभव था।
असल में अहिरावण की प्राण शक्ति उसके शरीर में थी ही नहीं, बल्कि पाताल लोक के पाँच अलग-अलग दिशाओ में जल रहे पाँच तेल के दीपकों में समाहित थी। और देवी पाताल भैरवी द्वारा अहिरावण को यह वरदान मिला था की उसे केवल तभी मारा जा सकता है जब इन पाँचों दीपकों को एक ही क्षण में बुझा दिया जाए।
और तब हनुमान जी ने अपना रूप विशाल किया और देखते ही देखते उनके पांच शीश प्रगट हो गए। उन पांचो दीपको की ओर एक एक शीश और एक तीव्र गर्जना के साथ हनुमान जी के पांचो मुख से हवा की एक ऐसी लहर निकली की एक ही छन में वे पांचो दीप बुझ गए और
चीखते हुए अहिरावण वही जलकर भस्म हो गया। साथ ही देवी पाताल भैरवी की माया और प्रभाव भी उसी समय समाप्त हो गया। और तभी श्रीराम लक्ष्मण ऐसे उठ खरे हुए जैसे नींद से जागे हो और हनुमान जी ने उन्हें अपनी पीठ पर बैठकर लंका अपने शिविर में ले आये।

