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क्या हुआ जब बाली ने हनुमान जी की आधी शक्ति खींचनी चाही !

लंकेश रावण को छह महीने अपनी काख में दबाकर रखने के बाद बाली गर्व से अठ्ठाहस करते हुए बोल रहा था, क्या कोई है इस संसार में जो मुझसे लड़ने की गलती कर सके। तभी जामवंत जी ने कहा, राजन आपकी शक्ति हनुमान के सामने कुछ भी नहीं। इसपर बाली ने कहा जामवंत क्या तुम भूल गए मैं किसी की भी आधी शक्ति अपने अंदर खींच सकता हूँ। और तुम मुझे छोरकर उस हनुमान को मुझसे अधिक शक्तिशाली बता रहे हो। 

तो सुनो! मैं आज ही उसकी आधी शक्ति अपने अंदर खींच कर उसकी जीवनलीला समाप्त कर देता हूँ। 

फिर अहंकार से गरजता हुआ बाली तपस्या कर रहे हनुमान जी के सामने जाकर उनकी आधी शक्ति खींचने लगा और तब हनुमान जी ने अपना विकराल रूप लेकर कुछ ऐसा किया की बाली थर थर कांपता हुआ डर कर भागने लगा।

दरअसल, किष्किंधा का राजा बाली कोई साधारण वानर नहीं था। वह देवराज इंद्र का पुत्र था और उसे वरदान प्राप्त था कि युद्ध में जो भी शत्रु उसके सामने आएगा, उसकी आधी शक्ति बाली के शरीर में समा जाएगी। इसी वरदान के बल पर उसने महाशक्तिशाली रावण को भी अपनी कांख में दबाकर सातों समुद्रों की परिक्रमा कर ली थी। उसे अपनी शक्ति पर इतना घमंड था कि वह खुद को ही ईश्वर समझने लगा था।

वहीं दूसरी ओर थे भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार, पवनपुत्र हनुमान। हनुमान जी के पास असीम शक्ति, बुद्धि और अमरता का वरदान था, लेकिन बचपन में मिले एक श्राप के कारण वह अपनी ही शक्तियों को भूले चुके थे। 

इसलिए बाली, हनुमान जी को ज्यादा शक्तिशाली नहीं मानता था और अपने बल के अहंकार में कहता फिरता, मैंने तो रावण को भी हराया है इस संसार में मुझसे शक्तिशाली कोई भी नहीं। पर ये बात जामवंत जी को अच्छी नहीं लगी क्योकि वे तो हनुमान जी के अतुलित बल का रहस्य जानते थे।

और बाली का यह अहंकार नाद जब बहुत बढ़ गया तो जामवंत जी ने क्रोधित होकर कहा, राजन आप जो अपनी इतनी शक्ति का दम्भ भरते फिरते है यह उचित नहीं क्योकि आपकी शक्ति हनुमान के सामने कुछ भी नहीं। इसपर बाली ने हसते हुए बोला वो हनुमान मुझसे ज्यादा शक्तिशाली है, क्या मजाक है! उसने तो कई अरसे से अपनी गदा भी नहीं उठाई। वो तो पहारो में बैठा राम-राम जपता रहता है। पर जामवंत तुम बोल रहे हो तो मैं उसकी आधी शक्ति अपने अंदर खींच लेता हूँ। इससे मैं और भी अधिक शक्तिशाली हो जाऊंगा। 

और बाली अपने बल के घमंड में चूर होकर जंगल में हाहाकार मचाते हुए, विशाल पेड़ों को खिलौनों की तरह फेकते हुए हनुमान जी के समक्ष पहुचा और ललकारते हुए कहने लगा। 

हनुमान आओ मुझसे युद्ध करो, मैं आज तुम्हारी आधी शक्ति लेने आया हूँ। आज तुम्हे मुझसे कोई नहीं बचा सकता। 

इसपर हनुमान जी ने कहा "राजन्! मैं युद्ध नहीं चाहता, आप यहाँ से चले जाये। 

तभी बाली ने हनुमान जी को युद्ध के लिए चुनौती देते हुए कहा अगर शक्ति है तो मुझसे युद्ध करो, नहीं तो मेरी अधीनता स्वीकार कर लो। तब हनुमान जी कहा मेरे स्वामी तो श्रीराम है और अधीनता की बात कहकर तुमने उनका अपमान किया है। अब तुम्हे सबक सिखाना अनिवार्य हो गया है। 

जैसे ही युद्ध शुरू होने वाला था मानो समय रुक गया और एक दिव्य प्रकाश के साथ प्रगट हुए ब्रह्मदेव! उन्होंने कहा कि हनुमान तुम अपनी असीम शक्ति का केवल दसवाँ हिस्सा लेकर ही युद्ध में जाओ, और बाकी सारी शक्ति अपने प्रभु श्री राम के चरणों में समर्पित कर दो। 

क्योकि अगर तुम पूरी शक्ति से लरे तो बाली तुम्हारे विकराल रूप के तेज से ही जलकर भस्म हो जायेगा। 

इससे श्री राम की भविष्य में होने वाली लीला में बाधा आ जाएगी। 

इसपर हनुमान जी ने कहा जैसी आज्ञा ब्रह्मदेव! 

और फिर शुरू हुआ हनुमान जी और बाली का भयानक युद्ध। 

जैसे ही युद्ध के मैदान में बाली और हनुमान जी आमने-सामने आए, बाली का वरदान सक्रिय हो गया। उसने हनुमान जी की शक्ति को अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया। 

जैसे जैसे हनुमान जी की शक्ति बाली के अंदर जा रही थी वो गर्व से कह रहा था। अब तुम्हारा अंत निकट है हनुमान। कुछ ही देर में बाली को ऐसा लग रहा था की अबतक उसके शरीर में इतनी शक्ति आ गई की वह पृथ्वी को भी गेंद की तरह उछाल कर फेक सकता है। पर जैसे जैसे हनुमान जी की अपार शक्ति बाली के अंदर आ रही थी उसे बड़ा ही आश्चर्य हो रहा था की हनुमान के अंदर इतनी अधिक शक्ति है। 

और तभी बाली ने सोचा मैं हनुमान के करीब जाकर जल्दी से इसकी सारी शक्ति खीच लेता हूँ और फिर बाली हनुमान जी के करीब जाकर और तीव्रता से हनुमान जी की शक्ति खींचने लगा। तभी कुछ ऐसा हुआ की बाली मरते मरते बचा। 

असल में बाली के शरीर में हनुमान जी की इतनी शक्ति आ गई की उसका शरीर शक्ति की गर्मी से जलने लगा, उसकी नसे फटने को हो गई। उसका शरीर ऊर्जा का पुंज बन चूका था और जैसे जैसे बाली और शक्ति खीच रहा था उसका शरीर गुब्बारे की तरह फूलने लगा। पर बाली अपने लालच और अहंकार में हार नहीं मान रहा था। 

और तभी वहां ब्रह्मा जी प्रगट हुए और बोले - बाली तुम्हे अब भी समझ नहीं आया की हनुमान की शक्ति अनंत है। तुम जल्दी यहाँ से भागो नहीं तो इतनी अधिक शक्ति से तुम्हारा शरीर कभी भी फट जायेगा। और तब बाली वहा से भागने लगा इसपर हनुमान जी ने भी अपनी शक्ति को पुनह अपने अंदर समेट लिया।

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