हनुमानजी अत्यंत ही क्रोधित मुद्रा में तीव्र गति से देवलोक के तरफ जा रहे थे, इससे सभी देवता भयभीत होकर इधर-उधर छुपने लगे। कोई भी क्रोधित हनुमानजी का सामना नहीं करना चाहता था। तभी हनुमानजी ने अपनी दिशा यमलोक के तरफ मोर दी, और यमलोक के द्वार पर पहुंचकर यमराज को पुकारने लगे। क्रोधित हनुमानजी की गर्जना सुनकर यमराज अपने शक्तिशाली यमदण्ड के साथ बाहर आये और जिस यमदण्ड से संसार में कोई भी बच नहीं पाया! उस यमदण्ड से यमराज ने हनुमानजी पर प्रहार कर दिया!
दरअसल गंधमादन पर्वत की कंदराओं के बीच माता अंजना के कमरे में एक भयानक सन्नाटा पसरा हुआ था। बालक हनुमान अपनी माँ के पास बैठे थे, पर आज उनकी माँ की सांसें अत्यंत धीमी थीं और शरीर ठंडा पर रहा था।
हनुमान जी की कांपती हुई आवाज़ गूंजी, "माँ... आँखें खोलो माँ!"
माता अंजना ने बरी कठिनाई से अपनी आँखें खोलीं और अपने पुत्र के गालों को छुआ। उनका स्वर एक धीमे स्पंदन जैसा था, "वत्स... मेरा समय आ गया है... अब मुझे जाना होगा..."
"नहीं माँ! नहीं!" हनुमान चीख उठे, "आप मुझे छोरकर कहीं नहीं जा सकतीं!"
परंतु विधि का विधान अटल था। अगले ही क्षण, माता अंजना का शरीर निश्चल हो गया, उनकी सांसें थम गईं।
यह देखते ही बालक हनुमान की आँखों में प्रलय की ज्वाला धधक उठी! उनका शरीर अग्नि-पुंज की भांति तपने लगा! उनके भीतर का रुद्र जाग उठा और उस एक चीख से सम्पूर्ण ब्रह्मांड कांप गया!
"किसने साहस किया मेरी माँ को मुझसे छीनने का? कौन है वो जो मेरी माँ को ले गया??"
क्रोध और पीरा से भरा बालक हनुमान खरा हुआ, पर अब वह केवल एक बालक नहीं बल्कि स्वयं महाकाल का रूप ले चुका था! उनकी भुजाएं फरकने लगीं तथा आँखों से विद्युत की कौंध निकलने लगी। उनके शरीर का तेज सहस्त्र सूर्यों को भी फीका कर रहा था।
तभी बाल हनुमान जी ने गर्जना करते हुए कहा, "यदि मेरी माँ नहीं, तो यह सृष्टि क्यों? यह ब्रह्मांड क्यों? कौन है वह मृत्यु का स्वामी? आज या तो मेरी माँ लौटेगी, या इस ब्रह्मांड से काल का अंत होगा!"
और अगले ही पल, उसने पृथ्वी से ऐसी छलांग लगाई कि आकाश फट गया! उसकी गति प्रकाश से भी तीव्र थी, उसने बादलों को चीर दिया और देवलोक की ओर बढ़ चला। देवता उनके प्रलयंकारी रूप को देखकर भयभीत होकर इधर-उधर छिपने लगे। इंद्र का सिंहासन डोल गया, वायुदेव सहम गए। किसी में इतना साहस नहीं था कि वे उस क्रोधित अग्नि-पुंज का मार्ग रोक सकें।
पर हनुमान का लक्ष्य देवलोक नहीं था। उन्होंने अपनी दिशा बदली और अंधकार से घिरे यमलोक की ओर मुर गए!
यमलोक के द्वार पर पहुँचकर उन्होंने ऐसी गर्जना की कि यमपुरी की नींव हिल गई।
"कहाँ है मृत्यु का राजा? कहाँ है यमराज? आज अंजना का पुत्र तुमसे न्याय मांगने आया है!"
उनकी ललकार सुनकर स्वयं यमराज, जिनके हाथ में वह अमोघ यमदण्ड था जिससे आज तक कोई प्राणी नहीं बच सका, अपने भवन से बाहर आए। उनकी आँखें अंगारों की तरह जल रही थीं।
उन्होंने गंभीर स्वर में कहा, "हे बालक! तुम काल के नियम को चुनौती दे रहे हो। मृत्यु ब्रह्मा का विधान है, उसे कोई नहीं बदल सकता।"
यह सुनते ही हनुमान का क्रोध अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया। उन्होंने अपनी गदा उठाई और यमराज पर आक्रमण कर दिया!
यह कोई साधारण युद्ध नहीं था! यह था एक पुत्र के प्रेम और सृष्टि के विधान का टकराव!
यमराज ने अपना यमदण्ड उठाया और हनुमान पर प्रचंड प्रहार किया! ब्रह्मांड ने अपनी सांसें रोक लीं! जिस यमदण्ड के स्पर्श मात्र से प्राण शरीर छोर देते थे, वह जब हनुमान के वज्र समान शरीर से टकराया तो निष्प्रभ हो गया! हनुमान जी पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ! क्योकि कुछ समय पहले ही सूर्य को फल समझ कर खाने के उपरांत उन्हें यमराज ने ही यमदण्ड से अभय होने का आशीर्वाद दिया था।
हनुमान जी ने फिर कहा मुझे मेरी माँ वापस कर दो, पर यमराज ने जब मना किया तो हनुमान जी ने अपनी गदा से ऐसा प्रहार किया कि यमलोक की धरती कांपने लगी।
तीनों लोकों में हाहाकार मच गया, ब्रह्मांड का संतुलन बिगरने लगा। यह देख स्वयं परमपिता ब्रह्मा यमलोक में प्रकट हुए और कहा, "रुको हनुमान! तुम्हारा क्रोध सृष्टि के नियमों को भंग कर रहा है।"
इसपर हनुमान जी ने उत्तर दिया, "मुझे मेरी माँ चाहिए, मेरी माँ वापस कर दो , मैं चला जाऊंगा। पर ब्रह्मा जी ने कहा यह सृष्टि के नियम के विरुद्ध है तुम वापस जाओ। तब हनुमान जी अत्यंत ही दुखी होकर जोर जोर से रोने लगे, उनके रोने की ध्वनि इतनी तीव्र थी की तीनो लोक कांप उठा। और तभी वहां प्रगट हुए भगवान विष्णु! और तब भगवान विष्णु ने माता अंजना के प्राण हनुमान जी को सौप दिया।
जैसे ही हनुमान माता अंजना के पास पहुंचे, वो दिव्य प्रकाश रूपी प्राण माता अंजना के निश्चल शरीर में प्रविष्ट हुआ और माता अंजना के मुख से पहला शब्द निकला... "हनुमान!" उस एक शब्द ने हनुमान जी के सम्पूर्ण क्रोध को शांत कर दिया।

